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विक्रम विश्वविद्यालय को अब विवि नहीं कह सकेंगे, आखिर क्यों?

जिसने जमीन दान की, उसका नाम कहीं नहीं लिखा

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय को अब शॉर्ट में विवि नहीं कह सकेंगे, क्योंकि अब इसका नाम सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय हो गया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर उच्च शिक्षा विभाग ने नाम बदलने के लिए सोमवार को मध्यप्रदेश विधानसभा में रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। खास बात यह रही कि सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष ने भी इसका समर्थन किया।
68 साल पहले स्थापित विक्रम विश्वविद्यालय अब सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय हो गया है। उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने सोमवार को विधानसभा में मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक 2025 पेश किया, जिसे बिना किसी विरोध के पारित कर दिया गया। इसका उद्देश्य उज्जैन के गौरवशाली इतिहास और भारतीय संस्कृति के महान सम्राट विक्रमादित्य की विरासत को सम्मान देना है। इसी उद्देश्य को लेकर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 30 मार्च 2025 को विश्वविद्यालय के 29वें दीक्षांत समारोह में नाम परिवर्तन की घोषणा की थी। समारोह में राज्यपाल मंगुभाई पटेल भी उपस्थित थे।

प्रदेश का दूसरा विश्वविद्यालय, जिसका बदला नाम
विक्रम विश्वविद्यालय प्रदेश का दूसरा ऐसा विश्वविद्यालय हो गया है, जिसका नाम बदला गया है। 1983 में सागर विश्वविद्यालय का भी नाम बदलकर डॉ. सर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय किया गया है। सागर विश्वविद्यालय की स्थापना बीसवीं शताब्दी के महान शिक्षाविद डॉ. हरिसिंह गौर ने 1946 में की थी। यह देश का एकमात्र ऐसा विश्विद्यालय है जिसकी स्थापना एकमात्र डॉ. गौर द्वारा दान की गई राशि से हुई थी। पहले उन्होंने 20 लाख रुपए दिए थे फिर 2 करोड़ रुपए की पूरी संपत्ति भी दान कर दी थी।
जिसने जमीन दान की, उसका भी हो उल्लेख :

  • विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना 1 मार्च 1957 को हुई थी।
  • विक्रम विश्वविद्यालय की आधारशिला 23 अक्टूबर 1956 को भारत के तत्कालीन गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने रखी थी।
  • बड़नगर से रणछोड़ लाल धाबाई ने इसके लिए जमीन दान की थी
  • जिसने जमीन दान की उसके बारे में कम ही लोग जानते हैं, इसलिए उनका भी उल्लेख विश्वविद्यालय में होना चाहिए।
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